स्वास्थ्य एवं रोग जीवन की दो अवस्थाएं हैं। जीवन में प्रतिक्षण शरीर का निर्माण और शारीरिक धातु पुष्टि का काम चलता रहता है। जब तक दोनों में संतुलन रहता है तब तक कि अवस्था को आरोग्य - रोग रहित जीवन कहा जाता है।
आयुर्वेदिक औषधि से न केवल रोग का उपचार होता है बल्कि इससे रोग के संपूर्ण कारण को रोकने का भी सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। आयुर्वेद शास्त्र में उल्लेख है कि संपूर्ण चिकत्सा योग्य वह औषधि है जो बीमारी को दूर कर कोई दुष्परिणाम उत्पन्न न होने दें। आयुर्वेद में वर्णित औषधियां पुराण जीवनदायी है।
आयर्वेदिक दवाएँ
अवलेह -पाक
क्वाथ ,स्वरस तथा काढ़ा आदि को पकाकर चीनी आदि देकर गाढ़ा कर लिया जाता है। इसे अवलेह या लेह खा जाता है। अवलेह पाक से अधिक दिनों तक निर्दोष रह सकता है तथा इसकी मात्र कम ली जाती है।
वटी गुटिकाआयुर्वेदिक वटी और वर्ति निम्न विधि कि दृष्टि से समान ही है, पर इसके आकर और औषधीय मात्र विभिन्न होतें हैं। प्रधानतः कष्टौषधियां , के खूब बारीक़ चूर्ण को मधुर लसदार रसादि के साथ मिलाकर गोलियाँ बनाई जाती हैं।
चूर्ण
आयुर्वेदिक काष्ठादि औषधियो क सेवन प्रायः चूर्ण या क्वाथ के रूप में ही अधिक होता है। प्रतेयक औषधि का चूर्ण अत्यंत बारीक़ कपड़े कि तहों में छना चूर्ण जैसा, कूट-पीस कर और उचित तरीके से चन कर अलग अलग रखा जाता है और फिर यथाविधि उनका मिश्रण किया जाता है।
घृत
शास्त्रोक्त विधि के अनुसार घृत, गो घृत में विशेष मूर्छाएं देकर और क्वाथ व दुग्ध आदि मिलाकर मंद व नियंत्रित आग पर पकाये जातें हैं। औषध - सिद्धि घृत जीर्ण रोग दूर कर शरीर को पुष्ट और निरोग बनातें हैं।
गुग्गलु
गुग्गल भुत ही आरोग्य होतें हैं। इनके सेवन से शारीर के सारे अंग संशोधित होतें हैं। रोम कूपों में को खोलने और रक्त संचरण को ठीक रखने कि वजह से भी ये विशेष लाभ पंहुचते हैं।
Follow Usआयुर्वेदिक औषधि से न केवल रोग का उपचार होता है बल्कि इससे रोग के संपूर्ण कारण को रोकने का भी सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। आयुर्वेद शास्त्र में उल्लेख है कि संपूर्ण चिकत्सा योग्य वह औषधि है जो बीमारी को दूर कर कोई दुष्परिणाम उत्पन्न न होने दें। आयुर्वेद में वर्णित औषधियां पुराण जीवनदायी है।
आयर्वेदिक दवाएँ
अवलेह -पाक
क्वाथ ,स्वरस तथा काढ़ा आदि को पकाकर चीनी आदि देकर गाढ़ा कर लिया जाता है। इसे अवलेह या लेह खा जाता है। अवलेह पाक से अधिक दिनों तक निर्दोष रह सकता है तथा इसकी मात्र कम ली जाती है।
वटी गुटिकाआयुर्वेदिक वटी और वर्ति निम्न विधि कि दृष्टि से समान ही है, पर इसके आकर और औषधीय मात्र विभिन्न होतें हैं। प्रधानतः कष्टौषधियां , के खूब बारीक़ चूर्ण को मधुर लसदार रसादि के साथ मिलाकर गोलियाँ बनाई जाती हैं।
चूर्ण
आयुर्वेदिक काष्ठादि औषधियो क सेवन प्रायः चूर्ण या क्वाथ के रूप में ही अधिक होता है। प्रतेयक औषधि का चूर्ण अत्यंत बारीक़ कपड़े कि तहों में छना चूर्ण जैसा, कूट-पीस कर और उचित तरीके से चन कर अलग अलग रखा जाता है और फिर यथाविधि उनका मिश्रण किया जाता है।
घृत
शास्त्रोक्त विधि के अनुसार घृत, गो घृत में विशेष मूर्छाएं देकर और क्वाथ व दुग्ध आदि मिलाकर मंद व नियंत्रित आग पर पकाये जातें हैं। औषध - सिद्धि घृत जीर्ण रोग दूर कर शरीर को पुष्ट और निरोग बनातें हैं।
गुग्गलु
गुग्गल भुत ही आरोग्य होतें हैं। इनके सेवन से शारीर के सारे अंग संशोधित होतें हैं। रोम कूपों में को खोलने और रक्त संचरण को ठीक रखने कि वजह से भी ये विशेष लाभ पंहुचते हैं।
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